विदेशी धरती पर देशी नृत्य
- डॉ. कृष्ण कुमार शर्मा
भारतीय नृत्य संस्कृति
विदेशों में कब और कैसे पहुँची यह कोई प्राचीन कहानी नहीं है।19वीं शताब्दी में
लंबे यातायात के साधन न के बराबर थे। पानी के बड़े बड़े जहाज़ बनने के बाद लंबी
यात्राओं का सिलसिला शुरू हुआ परंतु भारतीय साहित्य पूरे विश्व में पहुँच चुका था।
लोग पश्चिम में भारतीय साहित्य पर आधारित नृत्य कर काफी धन व लोकप्रियता अर्जित कर
रहे थे। लंदन उन दिनो पूरे विश्व की राजधानी कहलाती थी। लंदन में अनेकों रशियन
कलाकार भारतीय देवी देवताओं को आधार बना कर अपना नृत्य करते थे। परंतु भारतीय
नृत्यकार और नर्तक वहाँ पहुँच पाने में असमर्थ थे। जिस्क प्रमुख कारण था भारत एक गुलाम
देश था। यहाँ पर कला संस्कृति को आगे बढ़ाने के कार्यक्रम न के बराबर थे।हिंदु धर्म
ही पूजा और मंदिरों के नाम पर शास्त्रीय कलाओं का संरक्षक बना हुआ था। देवदासियाँ
ही मंदिरों में इन नृत्य कलाओं को देश में ही प्रस्तुत कर धार्मिक उत्सवों की शोभा
बनी हुईं थी।
भारतीय नृत्य में अनेक रंग
हैं, विरासत है, कहानियाँ हैं, धर्म है। ऐसी ऐसी
परंपराओं और रीतिरिवाज़ों पर आधारित इस नृत्य कला के रूप को जब भी कोई ध्यान से
निहारता है तो मुग्ध हो जाता है। शास्त्रीय नृत्य, लोक नृत्य ,
इंद्रधनुष में भी इतने रंग नहीं जीतने भारतीय नृत्य के रूप । चाहे वह शास्त्रीय
नृत्य क्यों न हो। 7 से 8 प्रकार के शास्त्रीय नृत्य,
भाषा और वेश भूषा बिल्कुल भिन्न हैं । लोक नृत्य अनेकों रंगों अनेक प्रांत रीति
रिवाज़ सभी कुछ न कुछ ऐसे संगीत के साथ बंधे हैं की एकता में अनेकों खूबियों से
संबंधित देश सूत्र से बंधे हैं। भारतीय कला को जब पंडित उदय शंकर ने पहचाना तब वह
एक ऐसा दौर था जब सभी कलाएँ दाबी हुई थीं। उन्होने सभी शास्त्रीय और लोक कलाओं को
मार्ग दिखाया और विदेशों में इनकी प्रस्तुतियाँ कर दुनिया को दिखाया की भले ही
भारत एक गरीब देश है परंतु यहाँ की नृत्य संगीत की विरासत अपार सम्पदा और साहित्य
से सम्पन्न है। यूरोप के देशों और अमेरिका में भी उदय शंकर ने अपनी नृत्य मण्डली
के द्वारा भारतीय नृत्य की पहचान कारवाई। वहाँ के लोगों में एक उत्सुकता जगाई ?
की वाकई भारत जैसे देश में इन टी नृत्य कलाएँ हैं। 1925 से 1947 तक भारतीय नृत्य
कला का परचम , यूरोप और अमेरिका में फैलाया जा रहा था।
श्री उदय शंकर जी की नृत्य
मण्डली में केवल नर्तक और नृत्यांगनाएँ ही नहीं अपितु देश के जाने माने संगीतज्ञ
भी थे। जिससे भारतीय संगीत की चर्चा भी विदेशों में हुई। भारतीय नृत्य के उद्गम और
विकास में श्री उदय शंकर जी ने अहम भूमिका निभाई।शास्त्रीयता के नाम पर भरतनाट्यम
की नृत्य शैली में श्रीमती रुक्मणी अरुनेडल ने यूरोप में पहुँचाया परंतु श्री उदय
शंकर जी की नवविकसित शैली से लोग काफी प्रभावित थे। वैसे तो भारतीय नृत्य का यूरोप
में प्रदर्शन 1920 में शुरू हो चुका था परंतु यह पूर्णतः भारतीय नहीं था।1920 से
लेकर 1927 तक उदय शंकर जी ने अन्ना पावलोवा के साथ नृत्य किए। परंतु उसके पश्चात
उन्होने भारत आकर उन्होने अपनी कंपनी की शुरुआत करने की कोशिश शुरू की। सभी
कलाकारों को इकट्ठा करना एक बड़ा अहम कार्य था। इसके लिए उन्होने अपने मित्रों का
सहारा भी लिया।
उदय शंकर अपनी नृत्य मण्डली को यूरोप ले जाना चाहते
थे परंतु धन एक अहम समस्या थी। जिसमें एलिस बोनर ने उनका साथ दिया। रवि शंकर जी के
तीनों भाई राजेंद्र, देवेंद्र और रवि नृत्य मण्डली में शामिल हुए। कनक
लता, बिहारी बैनर्जी , इस समूह में उनकी माताजी हिमागिनी देवी ने भी रख
रखाव का काम संभाला। लगभग सभी लोग परिवार व रिश्तेदार थे केवल राजेंद्र शंकर,
बनारस से आनंद भट्टाचार्य बाहरी नर्तक थे। और एलिस बोनर को प्रबंधक के रूप में
स्थान मिला था। 1930 में दुर्गा पूजा के बाद ग्रुप पेरिस के लिए रवाना हुआ। सीमकी
जो उदय शंकर जी की नृत्य पार्टनर थीं वे पेरिस में ग्रुप के आने के बाद पहुँची। तमीर
वरुण लगभग नवम्बर के मध्य में पहुँचे। पूरी नृत्य मण्डली तैयार थी।
19 नवम्बर 1930 को वहाँ
रिहर्सल शुरू हुई । यहाँ उल्लेखनीय बात यह है की किसी भी डांसर को यह पता नहीं था
की उसे क्या करना है। उदय शंकर जी ने सभी को अपनी कार्यशैली के अनुसार तैयार किया
और जन्म हुआ उदय शंकर शैली का। यहाँ अपने तरीके से एक नयी शैली की अभ्यास शैली भी
तैयार की गयी जिससे शरीर को तैयार किया जा सके। वेश भूषा और आभूषण भी स्वयं तैयार
किए गए। तमीर वरुण और विष्णुदास शिगली संगीत का कार्य तैयार करने में लगे जिन्हे
समय समय पर उदय शंकर जी भी निर्देशित करते थे।
3 मार्च 1933 को उदय शंकर
की कंपनी का पहला शो पेरिस में हुआ। जिसमें लगभग 15 आइटम थे। जिसमे 9 डांस और 6 संगीत रचनाएँ थीं। उदय शंकर जी के 3 एकल नृत्य इंद्रा, गन्धर्वा, शारी नृत्य। सिमकी के दो एकल नृत्य मंदिर नृत्य और बसंत । तीन युगल नृत्य , तलवार नृत्य , राधा कृष्ण, peasant डांस और अंत में तांडव
(सिमकी) नृत्य जो की एक सामूहिक नृत्य था। जिसमें शंकर,
सिमकी, देवेंद्र कनकलता , रवि, राजेंद्र आदि नर्तकों ने भाग लिया। 4 शो पेरिस में
करने के बाद कंपनी ने पेरिस अपना वेश बना कर यूरोप के बाकी देशों में नृत्य यात्रा
शुरू की। स्विट्ज़रलैंड, स्पेन, हॉलैंड, बेल्जियम, क्ज़ेच्स्लोवकीय, हंगेरी,
ऑस्ट्रीया, इटली, डेन्मार्क, नॉर्वे, स्वीडन, फ़िनलैड, लात्विया, यू.एस.ए, यू.के , बर्मा, सिंगापुर, कौला लमपुर, पैलेस्टाइन, बुल्गारिया, युगोस्लाविया और पोलैंड। इन सात सालों में कंपनी
ने लगभग 889 प्रदर्शन किए।जिससे यह पता चलता है की हर तीन दिन बाद एक शो।


(उदय शंकर व उनकी मण्डली) यह समय भारतीय नृत्य का विदेशी भूमि में प्रदर्शन का स्वर्ण अध्याय था। भारतीय संगीत और नृत्य में जिस प्रकार उदय शंकर जी ने यूरोप में लोकप्रियता दिलाई उससे वहाँ के लोगों में भारतीय संस्कृति के प्रति जागरूकता आई। और भारतीय संस्कृति की पहचान हुई । तांडव नृत्य जैसी संरचनाओं ने भारतीय डांस ड्रामा को जन्म दिया। और बैले शब्द भारतीय नृत्य से जुड़ा। जिस प्रकार अमेरिका में मार्थाग्राम और ईसा डोराडंकन ने मॉडर्न डांस ने अमेरिका की संस्कृति को दिया। लगभग वही कार्य उदय शंकर जी ने भारत के लिए किया। परंतु आज़ादी के बाद उनको वह सम्मान का स्थान नहीं मिला । जो किसी योग्य पुरुष को प्राप्त होता है ।
(श्री उदय शंकर)
Really innovative and amazing . Contains great facts and information about the legend Uday Shankar. In all great work and post
ReplyDeleteGreat work.
ReplyDeleteAmazing write up.
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