एक दो तीन चार पाँच
- डॉ. कृष्ण कुमार शर्मा
शायद ?
एक अकेले ने
रच डाली इस सृष्टि की
विनाश की लीला ।।
दो ने जब,
विश्वास दिखाया,
इस सृष्टि को विनाश से
जगाया॥
तीन नेत्र जब,
खुले सृष्टि पर,
तांडव कर,
नृत्य को बनाया॥
चार पुत्र माता के,
गर एक हो जाएँ,
इस सृष्टि से आतंक को
मिटाएं॥
पाँच तत्वों की है,
सृष्टि और मानव,
फिर क्यों न एक दूजे में
समाएँ।
फिर क्यों न,
एक दूजे के हो जाएँ।।
No comments :
Post a Comment